पाप
आज दैनिक जागरण में भारत भूषण की रचना पाप पढ़कर बहुत दिनों के बाद अच्छा लगा और में फ़ौरन अपने मित्र क्रिश्नाधार जी को फ़ोन कर भारत भूषण जी के बारे में मालूम किया हमारे पंडितजी तो भारत भूषण जी के बहुत बड़े प्रशंसक निकले और में पंडितजी की राय का बहुत सम्मान करता हूँ रचना ये है.
न जन्म लेता अगर कहीं में ,धरा बनी ये मसान होती,
न मंदिरों में मरदंग बजते,न मस्जिदों में अज़ान होती.
मुझे सुलाते रहे मसीहा ,मुझे मिटाने रसूल आये,
कभी सुनी मोहनी मुरलिया,कभी अयोध्या बजे बधाये,
मुझे दुआ दो बुला रहा हूँ हज़ार गौतम,हज़ार गाँधी,
बना दिए देवता अनेकों ,मुझे मगर न तुम पूज पाए,
मुझे रुलाकर न स्रष्टि हंसती,न सुर ,तुलसी , कबीर आते,
न क्रास का ये निशाँ होता , न पाक-पावन कुरान होती,
बुरा बता लें मुझत मोलवी,की दें पुरोहित हज़ार गली,
सभी चित्रय शकल बना लें बहुत भयानक ,कुरूप , काली,
मगर येही जब मिलें अकेले सवाल पूछो येही कहेंगे,
की पाप ही ज़िन्दगी हमारी ,वही ईद है वही दीवाली,
न सीचता अगर में जड़ों को कभी जहां में पुण्य फलता,
न रूप का यूँ बखान होता , न प्यास इतनी जवान होती.
आज दैनिक जागरण में भारत भूषण की रचना पाप पढ़कर बहुत दिनों के बाद अच्छा लगा और में फ़ौरन अपने मित्र क्रिश्नाधार जी को फ़ोन कर भारत भूषण जी के बारे में मालूम किया हमारे पंडितजी तो भारत भूषण जी के बहुत बड़े प्रशंसक निकले और में पंडितजी की राय का बहुत सम्मान करता हूँ रचना ये है.
न जन्म लेता अगर कहीं में ,धरा बनी ये मसान होती,
न मंदिरों में मरदंग बजते,न मस्जिदों में अज़ान होती.
मुझे सुलाते रहे मसीहा ,मुझे मिटाने रसूल आये,
कभी सुनी मोहनी मुरलिया,कभी अयोध्या बजे बधाये,
मुझे दुआ दो बुला रहा हूँ हज़ार गौतम,हज़ार गाँधी,
बना दिए देवता अनेकों ,मुझे मगर न तुम पूज पाए,
मुझे रुलाकर न स्रष्टि हंसती,न सुर ,तुलसी , कबीर आते,
न क्रास का ये निशाँ होता , न पाक-पावन कुरान होती,
बुरा बता लें मुझत मोलवी,की दें पुरोहित हज़ार गली,
सभी चित्रय शकल बना लें बहुत भयानक ,कुरूप , काली,
मगर येही जब मिलें अकेले सवाल पूछो येही कहेंगे,
की पाप ही ज़िन्दगी हमारी ,वही ईद है वही दीवाली,
न सीचता अगर में जड़ों को कभी जहां में पुण्य फलता,
न रूप का यूँ बखान होता , न प्यास इतनी जवान होती.
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