वो अपनी जफ़ाओं पे पशेमान नहीं हैं
ग़म नहीं मुझ से मुहब्बत नहीं करता कोई
क्या ये कम है कि नफरत नहीं करता कोई
कतील उस ने अगर कह दिया बुरा भी तो क्या
यही बहुत है मुझे याद कर रहा है कोई
वक़्त तेरी यह अदा मैं आज तक समझा नहीं
मेरी दुनिया क्यों बदल दी मुझ को क्यों बदला नहीं
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