Sunday 23 November 2014

वक़्त

हो गए बरसों मुझे  ख़ुद से मिले
वक़्त कितना क़ीमती है आजकल 



Sunday 16 November 2014

RUSWA

खुलता किसी पे क्यों  मेरे दिल का मामला
शेरों के इनतेखाब ने रुसवा किया मुझे 


कुछ यूँ हुआ कि जब भी ज़रूरत पड़ी मुझे
हर शख़्स इत्तफ़ाक़ से मजबूर हो गया


वक़्त की ढोकर लगी तो अच्छे अच्छे गिर पड़े 
सब से लड़ सकता है इन्सान  वक़्त से कैसे लड़े 


हो गए ख़ाक तो ह़म तक तेरी आवाज़ आई
ज़िन्दगी तू ने बहुत देर में  ढूँढा हम को


मेरी आँखों से जो बहता है उस पानी से क्या लेना
कोई भी हो उसे मेरी परेशानी से क्या लेना

लोग प्यार के लिए हैं और चीज़ें  इस्तेमाल के लिए
ग़लत तब है जब लोगों का इस्तेमाल चीज़ों से प्यार हो


हर एक तलाश का हासिल तो बस यही निकला,
जिस को ढूँढा वही शख़्स अजनबी निकला 


लिखा हुआ है ज़माने का करब चेहरे पर,
मुझे क़रीब  से जिसने पढ़ा उदास  हुआ