शेरों के इनतेखाब ने रुसवा किया मुझे
कुछ यूँ हुआ कि जब भी ज़रूरत पड़ी मुझे
हर शख़्स इत्तफ़ाक़ से मजबूर हो गया
वक़्त की ढोकर लगी तो अच्छे अच्छे गिर पड़े
सब से लड़ सकता है इन्सान वक़्त से कैसे लड़े
हो गए ख़ाक तो ह़म तक तेरी आवाज़ आई
ज़िन्दगी तू ने बहुत देर में ढूँढा हम को
मेरी आँखों से जो बहता है उस पानी से क्या लेना
कोई भी हो उसे मेरी परेशानी से क्या लेना
लोग प्यार के लिए हैं और चीज़ें इस्तेमाल के लिए
ग़लत तब है जब लोगों का इस्तेमाल चीज़ों से प्यार हो
हर एक तलाश का हासिल तो बस यही निकला,
जिस को ढूँढा वही शख़्स अजनबी निकला
लिखा हुआ है ज़माने का करब चेहरे पर,
मुझे क़रीब से जिसने पढ़ा उदास हुआ
wah.
ReplyDeletewah.
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