उम्र इतनी तो न थी जितना सबक़ सीख लिया,
A shared blog hosted by Mohd. Saleem Khan, Mazhar Masood and Shakil Akhtar to pour out their experiences of life span of about 65 years each and share memories of past good or bad with each other as well as with all viewers of this blog.
Wednesday, 23 July 2014
Saturday, 12 July 2014
MASLEHAT
तसलीम कर लिये हैं नाकर्दा जुर्म भी
कुछ मसलेहत थी बात बढ़ने से डर गए
मैं जो तनहा हुआ बढ़ने लगी शोहरत मेरी
आ गई काम मेरे मुझसे बग़ावत मेरी
CHOICE MADE BY A FRIEND GN
कुछ मसलेहत थी बात बढ़ने से डर गए
मैं जो तनहा हुआ बढ़ने लगी शोहरत मेरी
आ गई काम मेरे मुझसे बग़ावत मेरी
CHOICE MADE BY A FRIEND GN
Thursday, 10 July 2014
ऐब
सब ऐब सही मुझ में ,मगर आज भी मुझको ,
अपनों से ख़फ़ा होने का अंदाज ना आया ।
अपनों से दूर रहना तो जायज़ नहीं मगर ,
उनसे मिले जो ज़ख़्म वो पहले सिया करो ।
ज़िन्दा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग । लाज़िमी हो तो लश्कर नहीं देखें जाते
Wednesday, 9 July 2014
ख़फ़ा
तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों
अब हो गया यक़ीं कि बुरे हम हें दोस्तों
शिददते दर्द से शरमिंंदा नहीं मेरी वफ़ा
जिनसे रिश्ते गहरे हों वह दर्द भी गहरे देते हैं
ज़ख़्म लगते ही नहीं उसकी इजाज़त के बग़ैर
और फिर ज़ख़्म को मरहम भी वही देता है
हमारे बाद करेगा हमारी क़दर । जहाँ
हमारी मौत हमारी हयात से अहम
Saturday, 5 July 2014
अलग अलग विचार और अशार
कौन करता है यहाँ वक़्त के काँटे का इलाज
लोग तो ज़ख़्म को नासूर बना देते । हैं
कर के वफ़ा हम आरजी पछताते हैं । बहुत
वह अपनी जफ़ाओं पे पशेमान नहीं । हैं
हम समुंदर की तरह जरफ बड़ा रखते हैं
दिल में तूफ़ान तो चेहरे पे सुकून होता हैं
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