अब हो गया यक़ीं कि बुरे हम हें दोस्तों
शिददते दर्द से शरमिंंदा नहीं मेरी वफ़ा
जिनसे रिश्ते गहरे हों वह दर्द भी गहरे देते हैं
ज़ख़्म लगते ही नहीं उसकी इजाज़त के बग़ैर
और फिर ज़ख़्म को मरहम भी वही देता है
हमारे बाद करेगा हमारी क़दर । जहाँ
हमारी मौत हमारी हयात से अहम
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