न था कुछ , तो खुदा था , कुछ न होता तो खुदा होता
डुबोया मुझ को होने नें, न होता मैं तो क्या होता .
इस कैफियत का बयान तो ग़ालिब साहेब ही कर सकते हैं इस मैं तो किसी को कोई शक नहीं मगर आप जब ज़िन्दगी मैं उस मुकाम पर होतें हैं जब आपके होते हुए भी कुछ नहीं आप क्या हैं कुछ नहीं आप डूबे भी नहीं आप तैर रहे हैं मगर आप की तरफ कोई मुखातिब नहीं तो कभी कभी तो बहुत अच्छा लगता है मगर आप अगर इसके काइल हैं की
" रगों मैं दोड्ने फिरने के हम नहीं काइल ,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है "
इस हालत मैं बड़ी कोफ़्त होती है अब न तो लहू रगों मैं दोड़ता है और न ही ज़रुरत पडने पर आँख से टपकता है अगर बहुत कोशिश की तो फ़ौरन डाक्टर High BP बतला कर एक Tablet देगा और अगर आँख लाल है तो फिर आँख के डाक्टर आपका जीना मुश्किल कर देंगे. तो जनाब वो हर शेर ग़ज़ल जो पूरी ज़िन्दगी आपको सुरूर देता रहा अब एक परेशानी का बाईस बन जाता है.
mohobbat kar ke bhi dekha
ReplyDeletemohabbat mein bhi dhoka hai
Zindagi kaat dali aur us ne hamare saath dhoka kiya, yahan dard, wahan kamzori. Ham ne kya kiya tha bas zara sa sukoon hi to chaha tha?