उनको यह शिकायत है के हम , कुछ नहीं कहते
अपनी तो ये आदत है के हम , कुछ नहीं कहते
कहने को बहुत कुछ था अगर , कहने पे
आते
दुनिया की इनायत है के हम ,
कुछ नहीं कहते
अपनी तो ये आदत ...
कुछ कहने पे तूफ़ान उठा लेती है दुनिया
अब इसपे क़यामत है के हम ,
कुछ नहीं कहते
अपनी तो ये आदत ..
ये गाना बहुत याद आया जब हमारे मनमोहन जी ने ५ एडीटर्स को बुला कर प्रेस को मुखातिब किया . एक शोर मच गया की लो वो भी अब बोले . मेरी समझ मैं नहीं आता की इतना काबिल शख्स मुल्क की सब सी बड़ी कुर्सी पर जो बेठा हो वोह क्या रोज़ ब्यान दे . या छोट भइयों की तरह अंट-संट बोलता रहे .
हम को फख्र करना चाहिए की वोह शख्स काजल की कोठरी मैं रहते हुए आज तक बेदाग़ है उसकी काबलियत पर अच्छे-अच्छे रश्क करते हैं ज़रा दूसरे मुल्कों का हाल देखें कैसे कैसे लोग कहाँ कहाँ विराजमान हैं .
अब हम क्या उम्मीद करते हैं इतने बडे देश का प्रधान मंत्री क्या जादू की छड़ी रखता है वोह भी इतने ......... लोगों के बीच मगर इन लोगों को तो भी हम ने ही ही चुना है.
मगर वोह कहते हैं की ये ज़रूरी है की शोर मचता रहे इस से ये लगता है आजादी कायम है और आप जितने ऊपर जाएँगे उतना ही आलोचना झेलनी पडे गी तो फिर ठीक है भाई झेलो मगर इस शोर मैं जो वाकई ज़रूरी बातें हैं उधर से ध्यान न हटे............
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