This house-bird is most social bird and was found in plenty every where whether City , Town or Village. Suddenly it is becoming extinct . Few Years back Hindi News paper : DAINIK JAGARAN : ran few articles on saving this bird.
Though in my house one Sparrow Couple lives peacefully but I have never done any thing to save this precious bird but on last Sunday { 10-07-2011} . I had a pleasant surprise , when I saw the name of my friend in :Dainik Jagran.
One of my colleague and friend who retired 4 years earlier to me Shri R D Yadav is now settled in his home town near Gorakhpur and we often had telephonic talks just to enquire about each other but he never revealed that he is a Bird Lover . But the recent News item speaks otherwise. I am reproducing the News Item here
ये हैं गौरैया बचाने वाले बहुगुणा
गोपाल त्रिपाठी, बड़हलगंज (गोरखपुर) पेड़ों को बचाने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन शुरू किया था। इसके बाद ही वृक्षों के संरक्षण के लिए सरकार की तंद्रा टूटी थी। यहां भी हैं एक शख्स, जिन्होंने दैनिक जागरण में गौरैया के लुप्त होने की खबर पढ़ने के बाद अब उन्हें बचाने का बीड़ा उठा लिया है। बेशक उनका प्रयास सीमित स्तर पर है, लेकिन यह सरकार और उनके लिए सबक है जो पर्यावरण संरक्षण का दावा करते नहीं थकते। जान से ज्यादा इनके लिए प्यारी है गौरैया। क्या मजाल कि कोई उनके सामने गौरैया पर पत्थर भी फेंक दे। शाहजहांपुर में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री से 2002 में सेवानिवृत राज देव यादव गोरखपुर के गगहा ब्लॉक के मिश्रौली गांव के निवासी हैं। सेवानिवृत होने के बाद आमतौर पर कर्मचारी वीतरागी हो जाते हैं, लेकिन 2004 में दैनिक जागरण में गौरैया के संरक्षण संबंधी रपट पढ़ने के बाद उन्होंने इसे बचाने का संकल्प लिया। बकौल यादव, 2008 में उन्होंने शाहजहांपुर से ही एक नर व एक मादा गौरैया मंगाया। उन्हें कुछ दिनों तक पिजड़े में रखा। करीब दस दिनों बाद उन्होंने मादा गौरैया को पिजड़े से बाहर निकाला, मगर वह उड़ने के बजाय पिजड़े के ईद गिर्द ही मंडराने लगी। तब महसूस किया कि ये दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते। आज 25 नर व 25 मादा जोड़े गौरैया उनके घोंसले की शोभा बढ़ा रहे हैं। घर में खुद ही उन्होंने घोंसला तैयार किया है। अंडा देने और चूजा निकालने के दौरान उनका छोटा सा घर किसी उपवन से कम नहीं दिखता है। घर के किचन के अलावा थाली से भी दाना चुन पक्षी उनके मुंडेरों पर पर्यावरण संरक्षण का गीत सुनाते हैं। यादव ने बताया कि मादा गौरैया साल में तीन बार अंडे देती है और इन अंडों से दो से तीन बच्चे होते हैं। इस समय उनके घर में करीब दर्जन भर घोंसले हैं। उड़ने लायक हो जाने के बाद गौरैया के बच्चे बड़े होने पर आसपास के बागीचों में उड़ जाते हैं और प्रजनन के समय फिर घोंसले में आ जाते हैं। वे बताते हैं कि अब ये उनके परिवार का हिस्सा बन चुके हैं। उनकी इच्छा है कि शासन प्रशासन इस कार्य में उनका मार्गदर्शन व मदद करे जिससे विलुप्त होती गौरैया की प्रजाति को बचाया जा सके।
A FINE QUOTE ON THIS LITTLE BIRD
The sparrow that is twittering on the edge of my balcony is calling up to me this moment a world of memories that reach over half my lifetime, and a world of hope that stretches farther than any flight of sparrows.
Donald G. Mitchell
A FINE QUOTE ON THIS LITTLE BIRD
The sparrow that is twittering on the edge of my balcony is calling up to me this moment a world of memories that reach over half my lifetime, and a world of hope that stretches farther than any flight of sparrows.
Donald G. Mitchell
گوریا صحیح معنوں میں دنیا کی چڑیا ہے- شاہجہانپور میں ہم جب تھے تو بہت زیادہ تھیں. شام کو سٹیشن پر پیڑوں پر اتنی ہزاروں ہوتی تھیں کے کان پڑی آواز سنایی نہیں دیتی تھی- ان کے علاوہ بھی بہت سی اور چریایں ہوتی تھیں جن میں مینہ، ڈومنی ،کووا، چیل، فاختہ ، کبوتر، اور قمری قابل ذکر ہیں ،چیل کے ساتھ ایک اور دو دوسرے ولچر تھے دھوبن اور گدھ - ہریل بھی یاد آ رہا ہے- ہریل کو ہم نے کسی اور ملک میں نہیں دیکھا- بس گوریا ہر جگہ دیکھی. آپ نے یہ پوسٹ لکھ کر جی خوش کر دیا -
ReplyDeleteYes I exactly remember the scene at Shahjahanpur Railway Station. Alas that is no more so. At that time I frequently traveled to Unnao , Hardoi, Kanpur , Mallawan and so many other places and everywhere it was common to see , feel & listen thousands of Birds as narrated by you.
ReplyDeleteNow it is not so anywhere and we lost that Chahchehat{Twittering} in the din of urbanization.