कल रात करीब १०.३० बजे IPL का मैच देख रहा था की अपने बच्चे का फ़ोन आया की वोह करीब रात के ११ बजे आ रहे हैं तो दरवाज़ा खोल कर बहार आया , देखा की एक कार पड़ोस की गली में सड़क पर ढेर की गई रेत में फँस गई है { हमारे पडोसी मकान बनवा रहे हैं तो यह इताब तो मोहल्ले वालों को झेलना ही है } जब में पास गया तो गारी चालक ने सलाम किया , में ने पूछा की में क्या कर सकता हूँ उन्होंने कहा की एक फावड़ा दरकार है दो मजदूर { जो शायद वोह ही लाये थे } लगे हुए थे में घर आया फावड़ा तो नहीं मिला मगर एक कस्सी मिल गई वोह ले कर में ने उनके आदमिओं को दे दी. करीब आधे घंटे की महनत के बाद वोह कार वहाँ से निकल सकी .
खैर जब वोह लोग जाने लगे तो में ने उनको पहचान लिया वोह मोहल्ले के ही थे और उनके साथ जो मोहतरमा थीं वोह बोलीं " चचा सलाम , इस दौर में इतनी मदद कौन करता है शुकरिया "
में हैरान था की क्या हमलोग इतने खुदगर्ज़ हो गए , क्या घर से बाहर निकल कर किसी की परेशानी बाट नहीं सकते क्या ज़िन्दगी IPL , TV Serial , और TV Film में ही सिमट कर रह गई है हम TV ko Idiot Box कहते हैं क्या हम खुद Idiot बनकर नहीं रह गए हैं .
मगर ये तो घर घर , हर मोहल्ले और शहर की हालत है जब कोई परेशानी पड़ती तो हम को मालूम होता है की हम कितने अकेले हैं.......
मगर ये तो घर घर , हर मोहल्ले और शहर की हालत है जब कोई परेशानी पड़ती तो हम को मालूम होता है की हम कितने अकेले हैं.......
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