आज सुबह सुबह सलीम साहेब ने वजीर अंजुम का ज़िक्र कर दिया बस क्या था वोह खूबसूरत इंसान और उससे भी ज्यादा मदहोश आंखें और वोह पढने का अंदाज़ याद आ गया कैसे कैसे लोग हमारे बीच मैं नहीं रहे भला हो सलीम साहेब के ब्लॉग का उनका कलम पढ़ कर यादें ताज़ा कर लीं
हादसे राह भूल जाएँ गे साथ मेरे कोई चले तो सही ....
वजीर अंजुम
खैर अब हम उस उम्र मैं हैं की "In Obituary column most of the name appears of our colleagues or friends " ये छोटा सा शहर है तमाम लोग जो हमारी उम्रर के हैं वोह किसी न किसी तरह से Ordnanace Clothing Factory Shahjahanpur से जुडे हैं और वहीं के एक साथी हैं जो ५-६ माह मैं कहीं न कहीं टकरा जाते हैं और साहेब वोह सिर्फ एक ही तरह की खबर देते हैं उनका अंदाज़ ये है " अरे गंगवार साहेब याद हैं वोह नहीं रहे और वोह अपना कैंटीन मेनेजर चतुर्वेदी उसका तो एकदम से दिल का दौरा पडने से इन्तेकाल हो गया जबकि वोह शुगर का मरीज़ था { मनो शुगर वाला मर ही नहीं सकता } अशोक के बारे मैं क्या बताएँ वोह तो आप का ख़ास दोस्त था रति राम को तो मरे हुए बहुत साल हो गए कलीम साहेब का आपको मालूम ही हो गा "
इसतरह वोह मेरी GK नहीं बढ़ाते बल्कि मेरा दिल बुझा देते हैं फिर इसबार मैंने उनका काउंटर Doze निकाला उनसे पूछा पोपली साहेब के बारे मैं मालूम है वोह १९८७ में Retire हुए थे कल फून आया था बहुत मजे में हैं सब के बारे में पूछ रहे थे और खान साहेब वोह तो १९९१ मतलब २० साल पहले ही फारिग हुए थे कल अपनी बेटी को स्कूटर पर ले कर कहीं जा रहे थे यहाँ पर ये कहना और भी मुनासिब होगा की इन खान साहेब के बात करने का अंदाज़ और लहजा उतना ही दिलचस्प है जितना १९६३ में यानी ४८ साल पहले था वोह बहुत दिलचस्प इंसान हैं और फिर में उन साहेब को बताया की एक साहेब अब भी बाज़ार में पैदल मिलते हैं और सब्जी खरीद रहे होते हैं वोह १९७७ मतलब ३४ साल पहले फारिग हुए थे
लेकिन हमारे यहाँ हम लोग सिर्फ खबर के भूके हैं जब तक कोई मरता नहीं खबर नहीं बनती बात करने का मौजू नहीं बनता ..............
हादसे राह भूल जाएँ गे साथ मेरे कोई चले तो सही ....
बात वजीर अंजुम की थी उसके कलाम की थी और आज भी इस शहर में उसको लोग याद करते हैं ज़िक्र होता है और एक शाइर की यही कामयाबी है ........
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