नेट पर शाहजहांपुरी लफ्ज़ से रिश्ता रखने वाली चीज़ों को तलाश कर रहा था तो पाकिस्तान की एक साईट दिखी जिसपर लिखा था शाहजहांपुरी हरे कबूतर , वो देखकर न जाने कितनी बातें याद आती चली गईं
आज से 45 साल पहले जब सय्यद अजीजुल मलिक {मरहूम} कबूतर बाज़ी के सिलसिले मैं शाहजहांपुर आते थे तो उनका कयाम मरहूम मंजूरुल्लाह खान के घर पर होता था तो हम भी अपने खालू से मिलने ज़रूर जाते थे और उस दौरान हम इन कबूतर बाज़ों का शौक़ देख कर दंग रह जाते थे जनाब ये शौक़ तो आम आदमी कर ही नहीं सकता था बडे बडे मकान अलग कबूतर-खाने उनकी सफाई के लिए नौकर उनके दाने का ख़ास अह्त्माम और जो लोग इस सिलसिले मैं आते थे उनकी खातिर मदारात . क्या जलवा था क्या महफिलें थीं अब हम तो कबूतर के बाहरी हुस्न पर जाते थे मगर ये लोग सिर्फ वो ही कबूतर को कीमती मानते थे जो सब से ज्यदा देर तक उड़ सकता है और वहीं पर उतरता है जहां से उड़ता है.
इस सिलसिले मैं हम ने मलिक साहेब से पुछा कौन कबूतर अचछा है तो उन्हूं ने बताया था की शाहजहांपुर का सब्ज़ा पूरे हिन्दुस्तान मैं मशहूर है और उस कबूतर का कोई जवाब ही नहीं है.
कबूतर बाज़ जानते हैं की अगर दिल शाहजहांपुरी की वजह से शाहजहांपुर का उर्दू दुनिया मैं नाम है तो शाहजहांपुर के सब्ज़ा की वजह से भी कबूतर बाजों की दुनिया में शाहजहांपुर को बहुत ही इज्ज़त की निगाह से देखा जाता है और ये शाहजहांपुर का नायाब तोहफा है कबूतर बाजों को.
मैं ने बहुत कोशिस की मगर अफ़सोस नेट पर इस बारे में शाहजहांपुर का कहीं नाम ही नहीं है और बहुत ही अफ़सोस हुआ इस की वजह से शाहजहांपुर का आज कहीं ज़िक्र नहीं है .
अभी शाहजहांपुर मैं कुछ शौकीन बाक़ी हैं और मैं आइन्दा इसके बारे में ज़रूर मालूमात जमा करूंगा .