Tuesday 10 January 2012

ELECTION

अगले महीने से चुनाव  हो  रहे  हैं ऐसे   में  पुराने  चुनाव  बहुत  याद  आते  हैं   तब   हम  लोग  जो  गलिओं में रहते  हैं  वोह  भी  शोर  की वजह से  रात  रात  भर  जागते  रहते  थे.  फ़िल्मी  गानों  पर  खूब  चुनाव गीत  लिखे  जाते  थे  और  हम  सुनते  सुनते  थक  जाते  थे. गाँव  की बाज़ारों  में  आमने  सामने  बडे  बडे  भोपू  लगा  कर बोलने  वाले  अपने  चिन्ह  की  बड़ाई करते  थे  की   झोपडी  धुप  -पानी  से  बचाती  है कोई कहता  की  बैलों  की जोड़ी  खेत  जोतती है , कोई   हाथी  की  शाहाना  चाल की  तारीफ़  करता  तो  कोई  तीर-कमान को  बहादुरी  से  जोड़ता  था    मगर  तब  धर्म  और  जात  का  दखल  न  था   अभी  एक  दिन  टीवी पर  एक  ADVERTISEMENT  जब  एक  साईकिल   को  हाथी  से  आगे  भागते  देखा  तो  पुराने  दिन  याद  आ  गए   अभी  भी  जब  ये  बचपना  दीखता  है  तो  अच्छा  लगता  है.


तब  हर  बच्चा  खूब   रद्दी  और  रंग  बिरंगे  बंनर , पर्चे  जमा  करता  था  उनका  खूब  खेल  था  वोह  सब  ख़तम  हो  गया  फिर  खर्चा  कहाँ  हो  रहा  है   ?  फिर चुनाव  क्यों महंगा है ?

Monday 9 January 2012

पाप भारत भूषण

पाप 


आज दैनिक  जागरण में  भारत भूषण की  रचना  पाप  पढ़कर  बहुत  दिनों  के बाद अच्छा लगा   और में फ़ौरन  अपने मित्र  क्रिश्नाधार जी को  फ़ोन कर भारत  भूषण जी  के  बारे  में  मालूम  किया   हमारे  पंडितजी  तो भारत भूषण जी  के  बहुत  बड़े प्रशंसक  निकले  और  में  पंडितजी  की  राय का बहुत सम्मान  करता हूँ   रचना ये है.




न जन्म लेता अगर कहीं में ,धरा बनी ये मसान होती,
न मंदिरों में मरदंग बजते,न मस्जिदों में अज़ान होती.


मुझे सुलाते रहे मसीहा ,मुझे मिटाने रसूल आये,
कभी सुनी मोहनी मुरलिया,कभी अयोध्या बजे बधाये,
मुझे दुआ दो बुला रहा हूँ हज़ार गौतम,हज़ार गाँधी,
बना दिए देवता अनेकों ,मुझे मगर न तुम पूज पाए,
मुझे रुलाकर न स्रष्टि हंसती,न सुर ,तुलसी , कबीर आते,
न क्रास का ये निशाँ होता , न पाक-पावन कुरान होती,


बुरा बता लें मुझत मोलवी,की दें पुरोहित हज़ार गली,
सभी चित्रय शकल बना लें बहुत भयानक ,कुरूप , काली,
मगर येही जब मिलें अकेले सवाल पूछो येही कहेंगे,
की पाप ही ज़िन्दगी हमारी ,वही ईद  है वही दीवाली,
न सीचता अगर में जड़ों को कभी जहां में पुण्य फलता,
न रूप का यूँ बखान होता , न प्यास इतनी जवान होती.