Monday 26 December 2011

CRICKET AUSTRALIA

आज  बहुत दिनों के बाद  कुछ फुर्सत  या  इसको  रहत  कहैं  मिली  तो  आप  बीती  लिखने  बैठ  गया   अब  इस  उम्र  मैं  जब  घुटने  धोका  दे  रहे  हों  , आँखों  मैं  एक  मूजी  मर्ज़   के  साए  आगे  बढ़  रहे  हों  तो  असल  में  फुर्सत  नहीं  रहत  के  लम्हे नहीं मुअस्सर  होते  हाँ  कभी  कभी  राहत   सी  महसूस   होती  है       ऐसे   में तो  नेट  पर  बैठने  का  दिल  करता  है   या  फिर   टीवी    देखने  का.


ऑस्ट्रेलिया  में  मैच  शुरू  हो  चूका  है  फिर  वही   महा-शतक  का  राग   ,  अन्ना  की  भैरवी  पर  हमारा मीडिया मुग्ध  है   और  आने  वाले  इलेक्शन  का  घमासान  है   और  जो  असली  मुद्दे  हैं  वोह    बहुत    दूर  जा  चुके  हैं  उनकी  तरफ  से  ध्यान  हटाने  में   सब  लोग  कामयाब  हैं    और  ग़रीब  आदमी   ,  एक  आम  आदमी  इन  सब बातों  से  दूर   इस  कड़ाके  की  सर्दी   , रोज़ी -रोटी   की  जंग  में  लगा  हुआ  है.


ऐसे   में  हम  पर   मालिक  का  करम  है   की   फुर्सत  और  रहत  मिल  गई   मगर  ये  महंगाई   तो  हमको  भी  मार  रही  है    हमारी   बचत  तो  रोज़  घट  रही  है   मगर   हम  तो  बे-बस   हैं. 

Thursday 15 December 2011

शायरी

TO READ AND TO THINK

Shaher ke dukaNdaaro, kaarobar-e-ulfat meN

Sood kya hai ziyaN kya hai tum na jaan paao ge

Koi kaise milta hai, pool kaise khilta hai

AaNkh kaise jhukti hai, saaNs kaise rukti hai,

Wasl ka sukoon kya hai, hijr ka junooN kya hai,

Husn ka fusooN kya hai, Ishq ka darooN kya hai

Tum mareez-e -daanayi, maslehat ke shaidaayi,

Raah-e-gumrahaN kya hai, tum na jaan paao ge.

Zakahm kaise lagte hain, daagh kaise jalte hain,

Dard kaise hota hai, koyi kaise rota hai,

Aah kya hai fughaN kya hai tum na jaan paao ge

(From Khawateen Digest, Saadia Hameed Chaudhari Sep/ 2010 pp64)

Sunday 4 December 2011

अता उल हक कासमी के अक़वाल

سفید پوش وہ ہے جو ماسی برکتے کے تندور پر روٹی کھاتا ہے اور فائیو سٹارہوٹل کے سامنے کھڑے ہو کر خلال کرتا ہے - سیاست دان وہ ہے جو فائیو سٹارہوٹل میں کھانا کھاتا ہے اور ماسی برکتے کے تندور کے سامنے کھڑے ہو کر خلال کرتا ہے

ضمیر انسان کو گناہ سے نہیں روکتا - صرف گناہ کا مزہ کرکرا کرتا ہے.

اپنی بیوی سے رومانی گفتگو کرنا ایسا ہی ہے جیسے کویی ایسی جگہ کھجلاہے جہاں کھجلی نا ہو رہی ہو -
(عطاالحق قاسمی )

Friday 2 December 2011

पछतावे

आप बीती

आज हम ने फेस बुक पर एक बच्चे की रोती हुई पिक्चर देखि वोह किसी के डांटने पर रो रहा था. हमें अपना ज़माना याद आ गया . अब सोचते हैं की हम ने भी बच्चों पर डांट डपट से काम लिया था। एक बार कराची में (१९८७) हम ने समेरा, मेरी बड़ी बेटी, का आडियो कसेट तोड़ दिया था। वह गाने सुन रही थी और हम सो नहीं पा रहे थे, उस का वह चेहरा हमें आज तक याद है, दुःख भरा, अफसुर्दा , और बेबस । हम अक्सर याद करके अपने आप को मलामत करते हैं। वह उस समय १३ वर्ष की थी ।
एक बार हम सउदी अरब गये उमरा करने। मक्काह से मदीना जाते हुए हम अगली सीट पर ड्राईवर के साथ थे और बीवी और दोनों बच्चे पीछे। अरबी ड्राईवर बहोत ही जंगली था और घुस्सीला। हर दो मिनट पर वह बाहर थूकता था और साथ में बहोत ही भयानक अरबी गाने लगा रखे थे। साथ में वह ताली बजा बजा कर खुद भी बेसुरा गाता था । सारे रासते हमारे कान और दिल पक गये । हम को लगा क हम उसका कैसेट निकाल कर बाहर खिड़की के फ़ेंक दें। लेकिन सोचा की यह अरबी हमारे पासपोर्ट बाहर फ़ेंक दे गा। और हम को वह याद आया की हमने समेरा का कैसेट तोड़ दिया था। हम ने अल्लाह से माफ़ी मांगी और समेरा को भी दिल में प्यार किया। समेरा उस वक़्त हमरे साथ नहीं थी, वह लन्दन में पढ़ रही थी
यह १९९८ की बात है ।
हम को लगा की हम बहोत ही डरपोक हैं , कमज़ोर को मारते हैं और ज़बर दस्त से डरते हैं।
आज हम ने फेस बुक पर लिखा की बच्चों हमें माफ़ करदो