Thursday 18 December 2014

ज़ख़्म

देखे न कोई भी रहम की निगाह से,
अपना हर एक ज़ख़्म छुपाना पड़ा मुझे


ग़म भी ख़ुशी के साथ निभाना पड़ा मुझे
रोते हुए जहाँ को हँसाना पड़ा मुझे

Tuesday 16 December 2014

दिल

दिल सा भी कोई दोस्त  कहाँ मुझ को मिले गा
जलता है मेरे साथ ,सुलगता है मेरे साथ । 


हर एक साथ कोई वाकिया सा लगता है
जिसे भी देखो वह टूटा हुआ सा लगता है


वह जिस से हर्फ़ तसल्ली की थी उम्मीद मुझे
मुझे उदास जो देखा बहुत हँसा मुझ पर । 

जबते पहम ने कर दिया पत्थर 
वरना हम तो बिखर गए होते । 



Sunday 23 November 2014

वक़्त

हो गए बरसों मुझे  ख़ुद से मिले
वक़्त कितना क़ीमती है आजकल 



Sunday 16 November 2014

RUSWA

खुलता किसी पे क्यों  मेरे दिल का मामला
शेरों के इनतेखाब ने रुसवा किया मुझे 


कुछ यूँ हुआ कि जब भी ज़रूरत पड़ी मुझे
हर शख़्स इत्तफ़ाक़ से मजबूर हो गया


वक़्त की ढोकर लगी तो अच्छे अच्छे गिर पड़े 
सब से लड़ सकता है इन्सान  वक़्त से कैसे लड़े 


हो गए ख़ाक तो ह़म तक तेरी आवाज़ आई
ज़िन्दगी तू ने बहुत देर में  ढूँढा हम को


मेरी आँखों से जो बहता है उस पानी से क्या लेना
कोई भी हो उसे मेरी परेशानी से क्या लेना

लोग प्यार के लिए हैं और चीज़ें  इस्तेमाल के लिए
ग़लत तब है जब लोगों का इस्तेमाल चीज़ों से प्यार हो


हर एक तलाश का हासिल तो बस यही निकला,
जिस को ढूँढा वही शख़्स अजनबी निकला 


लिखा हुआ है ज़माने का करब चेहरे पर,
मुझे क़रीब  से जिसने पढ़ा उदास  हुआ


Saturday 18 October 2014

इल्ज़ाम

मत पूछिए  हम ज़ब्त की किस राह से गुज़रे 
ये देखिए किसी पर कोई इल्ज़ाम न आया

उस ने चुप रह कर सितम और भी ढाए मुझपर
उस से बेहतर हैं मेरे हाल पर हँसने वाले

दोस्त बनकर मिले मुझ को मिटाने वाले
मैं ने  देखें हैं कई रंग  ज़माने  वाले

अब तो अपने आप को भी अजनबी लगती हूँ मैं 
कौन मुझ से छीन कर मेरी निशानी ले गया


तोहमत

हम अपनी तोहमतों की सफ़ाई न दे सके
ख़ामोश रहकर जग में बदनाम हो गए 


इन्सान अगर आँसु के समुंदर में भी डूब जाए 
तब भी तक़दीर का लिखा हुआ नहीं मिटा सकता


क़िस्मत में जो लिखा था सो देखा है अब तलक
और आगे देखिये अभी क्या क्या है देखना

ये सरकशी बग़ावत मेरी सरिशत न थी
बहुत सताया जहाँ ने तो में ने मुँह खोला

Monday 6 October 2014

चर्चा

अपनी गरज का भूल के चर्चा न कीजिए
ख़ुद को निगाहें फ़र्ज़ में रुसवा न कीजिए



ज़िन्दगी

कब तक रहेगी हम पे मेहरबाँ ज़िन्दगी 
थोड़े दिनों की और है मेहमान ज़िन्दगी 


कही किसी से न रूदादे ज़िन्दगी मैं ने
गुज़ार देने की शै थी गुज़ार दी मैं ने




बजाहिर जो बहुत अच्छे भले मालूम होते हैं
वो अन्दर से बहुत टूटे हुऐ मालूम होते हैं

बेवफ़ाई की तोहमत सर हमारे है लेकिन
बात जब बिगड़ती है बात हम बनाते हैं

दिल में क्या क्या सोच रखा था पर वैसा नहीं हुआ
दुनिया भी मेरे हाथ न आई कोई भी मेरा नहीं हुआ

Saturday 4 October 2014

पत्थर

नहीं है ग़म मुझे ज़ख़्मों का बस यही ग़म है 
कि मेरे अपने थे पत्थर उठाने वालों में 


आँख से होकर मेरे दिल में उतरता कौन है ?
रूह के इस शहर  वीरां से गुज़रता कौन है ?


ये शिददते एहसास भी मर जाए तो अच्छा 
कमबख़्त यही मुझको परेशान करें है

हम तो बदनाम हैं बस यूँ ही
लोग  दुनिया में क्या नहीं करतेौ




Thursday 18 September 2014

झूठ

मैं झूठ कह सकी न किसी से किसी तरह 
सच्चाइयों ने जग में रुसवा किया मुझे


दौलते दर्द को दुनिया से छुपा कर रखा
आँख में बूँद न थी दिल में समुंदर रखा

ये शिददते अहसास भी मर जाए तो अच्छा 
कमबख़्त यही मुझको परेशान करें है

मुझको फ़रेब दे न सके गा तेरा खलूस 
मैं ने तुझे क़रीब से देखा है ज़िंदगी 


हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाईयोंं  का शिकार आदमी

हम ने जब जब प्यार बाटा तोहमतें मिलीं
ज़िन्दगी का एक यह भी तजुरबा अच्छा लगा



Monday 1 September 2014

वफ़ा

करके वफ़ा हम अर्ज़ी पछताते हैं बहुत
वो अपनी जफ़ाओं पे पशेमान नहीं हैं 


ग़म नहीं मुझ से मुहब्बत नहीं करता कोई 
क्या ये कम है कि नफरत नहीं करता कोई


कतील उस ने अगर कह दिया बुरा भी तो क्या 
यही बहुत है मुझे याद कर रहा है  कोई

वक़्त तेरी यह अदा मैं आज तक समझा नहीं 
मेरी दुनिया क्यों बदल दी मुझ को क्यों बदला नहीं 

Thursday 14 August 2014

तूफ़ान

अपने सीने में समेटे हुए कितने तूफ़ान 
मैं हूँ ख़ामोश ज़माने में समुंदर की तरह 

ऐ ख़ुदा लोग बनाए थे अगर पथर के
मेरे एहसास को शीशा न बनाया होता

मैं अपने आप में खोया हुआ सा रहता हूँ 
ये सोचना भी नहीं साहिबे ग़रूर हूँ मैं 


Wednesday 23 July 2014

वक़्त

वक़्त भी लेता है न जाने करवटें कितनी,
उम्र इतनी तो न थी जितना सबक़ सीख लिया,




Saturday 12 July 2014

MASLEHAT

तसलीम कर लिये हैं  नाकर्दा जुर्म भी 
कुछ मसलेहत थी बात बढ़ने से डर  गए 


मैं जो  तनहा हुआ बढ़ने लगी शोहरत मेरी 
आ गई काम मेरे मुझसे बग़ावत मेरी 


CHOICE   MADE BY A FRIEND  GN


Thursday 10 July 2014

ऐब

सब ऐब सही मुझ में ,मगर आज भी मुझको ,
अपनों से ख़फ़ा होने का अंदाज ना आया ।  

अपनों से दूर रहना तो जायज़ नहीं  मगर ,
उनसे मिले जो ज़ख़्म  वो पहले सिया करो । 


ज़िन्दा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग ।  लाज़िमी हो तो लश्कर नहीं देखें जाते    



Wednesday 9 July 2014

ख़फ़ा

तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों 
अब हो गया यक़ीं कि बुरे हम हें  दोस्तों 


शिददते  दर्द  से शरमिंंदा नहीं मेरी वफ़ा 
जिनसे रिश्ते गहरे हों वह दर्द भी गहरे देते हैं


ज़ख़्म लगते ही नहीं उसकी इजाज़त के बग़ैर 
और फिर ज़ख़्म को मरहम भी वही देता   है


हमारे बाद करेगा हमारी क़दर । जहाँ 
हमारी मौत  हमारी हयात से अहम 

Saturday 5 July 2014

अलग अलग विचार और अशार

कौन करता है यहाँ  वक़्त के काँटे का इलाज
लोग तो ज़ख़्म को  नासूर बना देते ।  हैं             

कर के वफ़ा हम आरजी पछताते हैं । बहुत
वह अपनी जफ़ाओं पे पशेमान नहीं ।  हैं 


हम समुंदर की तरह  जरफ बड़ा रखते हैं
दिल में तूफ़ान तो चेहरे पे सुकून होता हैं



Monday 9 June 2014

दर्द

वो दर्द जो दुश्मन के हवाले से मिला है
कम उस से है जो चाहने वालेे से मिला है


आप ग़ैरों की बात करते हैं हम ने अपने भी आज़माए हैं
लोग काँटों से बच कर चलते हैं हमने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं



Thursday 29 May 2014

प्रचलित अशार

मुझे । अपनों  ने । ही लूटा भला ग़ैरों  में । क्या दम था
मेरी कशती वहाँ । डूबी जहाँ  पानी बहुत कम था


कभी  कभी न । गोली निकलती है न तलवार चलती है
फिर भी इन्सान ज़ख़्म  ज़ख़्म । हो जाता   है

उम्मीद  टूटे तो बस अफ़सोस होता है
मगर यक़ीन  टूटेे तो सब ख़त्म हो जाता है

Pessimistic approach towards life due to tragedies generate such thoughts
And  one goes deep and deep in the ocean of gloom sadness . To tide over
Such situation one should change the company of persons and select such 
Persons who are enjoying the life with passion , positive thinking .Besides this mostly persons should choose such literature only which would brighten their
Day with good thoughts.

Fortunately we have got such friends who always brighten our day by their wit,
Thoughts and positive approach.

Tuesday 20 May 2014

घायल

तमाम जिस्म  ही घायल था घाव ऐसा था
कोई ना जान सका रख रखाव ऐसा  था



मसला दिल का किसी के काैन सुलझाए यहाँ 
सब हैं अपने मसलों में उलझे हुऐ घबराए हुऐ 

तनकीद अच्छी बात है
नुक़्ताचीनी बुरी । और
ऐबजोई बदतरीन
मगर तनकीद की आड़ में दोनों ही काम होते हैं 

Thursday 17 April 2014

Dard aapna aapna








Nafs ko aanch par wo bhi umar bhar rakhna,
Bahut muhaal hai aapne ko motbar rakhna.

Saturday 15 March 2014

कुछ अलग अलग

बड़े  मज़े से गुज़रती है बेख़ुदी में अपनी , ख़ुदा वो दिन ना दिखाए कि होशियार हों हम ।                    



कुछ फ़िकरे ज़माना है तो कुछ अपनी फ़िक्र है
हर शख़्स गिरफ़्तार गमे शामो-सहर है





Art is boundless