Wednesday 23 July 2014

वक़्त

वक़्त भी लेता है न जाने करवटें कितनी,
उम्र इतनी तो न थी जितना सबक़ सीख लिया,




Saturday 12 July 2014

MASLEHAT

तसलीम कर लिये हैं  नाकर्दा जुर्म भी 
कुछ मसलेहत थी बात बढ़ने से डर  गए 


मैं जो  तनहा हुआ बढ़ने लगी शोहरत मेरी 
आ गई काम मेरे मुझसे बग़ावत मेरी 


CHOICE   MADE BY A FRIEND  GN


Thursday 10 July 2014

ऐब

सब ऐब सही मुझ में ,मगर आज भी मुझको ,
अपनों से ख़फ़ा होने का अंदाज ना आया ।  

अपनों से दूर रहना तो जायज़ नहीं  मगर ,
उनसे मिले जो ज़ख़्म  वो पहले सिया करो । 


ज़िन्दा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग ।  लाज़िमी हो तो लश्कर नहीं देखें जाते    



Wednesday 9 July 2014

ख़फ़ा

तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों 
अब हो गया यक़ीं कि बुरे हम हें  दोस्तों 


शिददते  दर्द  से शरमिंंदा नहीं मेरी वफ़ा 
जिनसे रिश्ते गहरे हों वह दर्द भी गहरे देते हैं


ज़ख़्म लगते ही नहीं उसकी इजाज़त के बग़ैर 
और फिर ज़ख़्म को मरहम भी वही देता   है


हमारे बाद करेगा हमारी क़दर । जहाँ 
हमारी मौत  हमारी हयात से अहम 

Saturday 5 July 2014

अलग अलग विचार और अशार

कौन करता है यहाँ  वक़्त के काँटे का इलाज
लोग तो ज़ख़्म को  नासूर बना देते ।  हैं             

कर के वफ़ा हम आरजी पछताते हैं । बहुत
वह अपनी जफ़ाओं पे पशेमान नहीं ।  हैं 


हम समुंदर की तरह  जरफ बड़ा रखते हैं
दिल में तूफ़ान तो चेहरे पे सुकून होता हैं