Saturday 18 October 2014

इल्ज़ाम

मत पूछिए  हम ज़ब्त की किस राह से गुज़रे 
ये देखिए किसी पर कोई इल्ज़ाम न आया

उस ने चुप रह कर सितम और भी ढाए मुझपर
उस से बेहतर हैं मेरे हाल पर हँसने वाले

दोस्त बनकर मिले मुझ को मिटाने वाले
मैं ने  देखें हैं कई रंग  ज़माने  वाले

अब तो अपने आप को भी अजनबी लगती हूँ मैं 
कौन मुझ से छीन कर मेरी निशानी ले गया


तोहमत

हम अपनी तोहमतों की सफ़ाई न दे सके
ख़ामोश रहकर जग में बदनाम हो गए 


इन्सान अगर आँसु के समुंदर में भी डूब जाए 
तब भी तक़दीर का लिखा हुआ नहीं मिटा सकता


क़िस्मत में जो लिखा था सो देखा है अब तलक
और आगे देखिये अभी क्या क्या है देखना

ये सरकशी बग़ावत मेरी सरिशत न थी
बहुत सताया जहाँ ने तो में ने मुँह खोला

Monday 6 October 2014

चर्चा

अपनी गरज का भूल के चर्चा न कीजिए
ख़ुद को निगाहें फ़र्ज़ में रुसवा न कीजिए



ज़िन्दगी

कब तक रहेगी हम पे मेहरबाँ ज़िन्दगी 
थोड़े दिनों की और है मेहमान ज़िन्दगी 


कही किसी से न रूदादे ज़िन्दगी मैं ने
गुज़ार देने की शै थी गुज़ार दी मैं ने




बजाहिर जो बहुत अच्छे भले मालूम होते हैं
वो अन्दर से बहुत टूटे हुऐ मालूम होते हैं

बेवफ़ाई की तोहमत सर हमारे है लेकिन
बात जब बिगड़ती है बात हम बनाते हैं

दिल में क्या क्या सोच रखा था पर वैसा नहीं हुआ
दुनिया भी मेरे हाथ न आई कोई भी मेरा नहीं हुआ

Saturday 4 October 2014

पत्थर

नहीं है ग़म मुझे ज़ख़्मों का बस यही ग़म है 
कि मेरे अपने थे पत्थर उठाने वालों में 


आँख से होकर मेरे दिल में उतरता कौन है ?
रूह के इस शहर  वीरां से गुज़रता कौन है ?


ये शिददते एहसास भी मर जाए तो अच्छा 
कमबख़्त यही मुझको परेशान करें है

हम तो बदनाम हैं बस यूँ ही
लोग  दुनिया में क्या नहीं करतेौ