A shared blog hosted by Mohd. Saleem Khan, Mazhar Masood and Shakil Akhtar to pour out their experiences of life span of about 65 years each and share memories of past good or bad with each other as well as with all viewers of this blog.
Saturday, 2 July 2011
Ever Lasting Urdu poetry
I do not remember when I read these lines, 30 years back or 40 years back but I could never forget these lines. Hope you may also like this poetry.
ابتدا عشق خواہشیں وعدے
انتہا حجر کاہیشیں صدمے
زندگی کیف و رنگ و رعنائی
موت یاس و الم و تنہائی
**********
इब्तेदा, इश्क, खुआहिशें, वादे
इन्तहा, हिज्र, काहिशें, सदमे
ज़िन्दगी कैफ़ो रन्गो रानाई
मौत यासो अलमो तन्हाई
***********
ستارے ڈوبتے جاتے ہیں حقہ پی رہا ہوں میں
ہر ایک کش پر چلم کی آگ مدھم ہوتی جاتی ہے
نظام عمر انسان بھی اسی سے ملتا جلتا ہے
کہ جتنے سانس آتے ہیں زندگی کم ہوتی جاتی ہے
***********
सितारे डूबते जाते हैं हुक्का पी रहा हूँ मैं
हर एक कश पर चिलम की आग मध्धम होतो जाती है
निजामे उम्रे इन्सां भी इसी से मिलता जुलता है
के जितने सांस आते हैं ज़िन्दगी कम होतो जाती है
********
********
********
Friday, 1 July 2011
AAP BEETI
गैस डीज़ल केरोसीन आयल का दाम बढने पर फिर वही तमाशा दिखाई दिया , सड़कों पर वोह औरतें दिखाई दीं जो या तो किराए पर थीं या जिनके घर गैस का कभी टोटा होता ही नहीं यह तमाशा हर बार होता है पता नहीं इस से क्या होता है प्रदर्शन ज़रूर करना चाहिए मगर कोई आकर देखे तो जो असली गरीब हैं उनकी क्या दुर्दशा है उनकी क्या समस्या हैं
" होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे "
एक छेत्र ऐसा है जहां पता नहीं कब से दाम नहीं बढे हैं वोह है रेल हर व्यक्ति यात्रा करता है और हर शख्स को उसका फाईदा है मगर इसका हमने कभी ज़िक्र नहीं किया . अब तो हालत ये है की यहाँ से लखनऊ जाने मैं सरकार को हम ५६ रुपये देते हैं और शाहजहांपुर और लखनऊ मैं मिला कर ५० रूपये देते हैं रिक्शा वाले को तब अपने घर से जहां जाना है वहाँ तक पहुंच पाते पाते हैं
इस बीच सब कुछ बढ़ा है मगर रेल ने जन मानस की सुविधा का ख्याल रखा है किराया बढ़ाना तो बहुत सहल है इस से पहले हर साल किराया बढ़ता था हम को ज़मीनी हालत देखकर ही फैसला करना चाहिए .क्या समस्या है और उसका क्या हल है समस्या का समाधान मिलजुल कर ही होता है मगर यहाँ " Opposition for opposition sake " होता है
अब बारिश का मौसम आ गया और बाढ़ भी आएगी एकदम से सब्जी के दम २००% से लेकर ३००% बढ़ जाएँगे बाज़ार से खाने की चीजें गाएब हो जाएँगी हर शख्स परेशान होगा और गरीब लोग फाके करेंगे मगर उनकी समस्या पर क्या कोई ध्यान देगा . ये हर साल होता है कुछ समस्या वास्तविक है और कुछ लोग मुनाफाखोरी करते हैं मगर इतने बडे निजाम मैं कौन किसको किसको देखे जब हम सब ही खुद गुनाहगार हैं तो दूसरों को दोष क्या दें .
Subscribe to:
Posts (Atom)