Saturday 15 March 2014

कुछ अलग अलग

बड़े  मज़े से गुज़रती है बेख़ुदी में अपनी , ख़ुदा वो दिन ना दिखाए कि होशियार हों हम ।                    



कुछ फ़िकरे ज़माना है तो कुछ अपनी फ़िक्र है
हर शख़्स गिरफ़्तार गमे शामो-सहर है





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