Wednesday 25 May 2011

AAP BEETI

पहले तो  ये  सोचा  की  शकील  भाई  के  सच  पर  Comment  लिख  दूं   मगर  सच  क्या  है   सच  अगर  हम को  दिख  जाए  तो फिर समझ  लो  की  दुनिया   पा  ली   और  इस  दुनिया  के  बाद  जो  कुछ  है  वोह  भी  पा  लिया   हम  अपनी  समझ  ,  अक्ल  , इल्म   के  दायरे  में  बंद  हैं   और  हमारे  छोटे  छोटे  फायदे ,  ये  रिश्ते  ,  ये  हवस , ये  सब  हमको  सच  से  बहुत  दूर  ले  जाते   हैं   हमारे  वहम ,  हमारे   खौफ   ये  सब  आँखों  पर  पट्टी  बांध  देते  हैं   और लालच    से   दोनों  हाथ  बन्ध  जाते 

खैर   साहेब  यहाँ  हस्सास  इंसान  के  लिए   सिर्फ  दर्द  ही  दर्द  है  और  वोह  भी  अपनों   से...........

ये  ज़िन्दगी  कभी  कभी  अज़ाब  लगे  है ,
कूवाते-समात  कभी कभी  अभिशाप लगे  है ,
नाकर्दा गुनाहों की  जब हमको   सजा  मिले ,
ये कहाँ  का  बताओ  इन्साफ  लगे  है .
दिल चाहे  की  छोड़ दूं  जिनसे ये शाप मिले ,
मगर  अपनों  को  छोड़ना भी तो पाप लगे  है 




हमलोग  न  तो  लिख  सकते  हैं  न  ही  गा  सकते  हैं  , शामे-फ़िराक  पे   ग़ज़ल  आबिदा परवीन  की  आवाज़  में  सुनें.


शबे-फ़िराक  तो  गुज़र  ही  गई  है   क्या  अब   भी  रौशनी नहीं  दिखी..................................








2 comments:

  1. खैर साहेब यहाँ हस्सास इंसान के लिए सिर्फ दर्द ही दर्द है और वोह भी अपनों से...........
    65 years men ek sach to maaloom kar hi liya. Ek gana hai .. 'sapne dhoka dete hain, apne dhoka dete hain..' shayed woh bhi 65 cross kar gaya tha.
    abida parveen ki awaz aur Faiz ka kalaam, wah maza aa gaya. Thanks bhai sahab.

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  2. Ham to aapki pasand ki daad detay hain. Mazhar Masood

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