Wednesday 25 May 2011

सत्त्यम एव जयते

सत्यम एव जयते
यह संस्कृत का एक मशहूर फरमान है ।
लेकिन सच क्या है, जीत क्या है, यह एक सवाल है ।
इस का उत्तर क्या है
हम तो अक्सर जीतते जीतते जान कर हार जाते हैं । और इस हार में जीत से ज़ादा मज़ा होता है।
सच को ढूँढते ढूंढते झहूट की दीवार को चाटते हैं और जब दीवार ख़तम होती है तो सच भी घाएब हो जाता है ।
बस एक सुराख़ हासिल होता है।
सत्यम एव जयते का क्या यह मतलब है के जो सच होता है वोह जीतता है?
या जो जीतता है वोह सच होता है?
जीतने के लिए तुम्हारा सच होना ज़रूरी है
या सच सच जब ही हो गा के वोह जीत कर दिखाए?
और जीतना तो है मगर किस से। यानी हमारे (सच कह रहा है) साथ कौन खेल रहा है जिस से हम को जीतना है?...................
क्या यह काफी नहीं है के सच सच है। क्या ज़रूरी है के वोह जीते भी?
सच तो बे निआज़ होता है। उस को जीत और हार से क्या लेना देना।
..............

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ .......

(सलीम ने खुद ही हम को यह मोका दिया है के हम अपनी दिल की भरास निकालें। अब भुगतो ।)

No comments:

Post a Comment

kindly be modest in your comments.